शिक्षा के साथ आजादी और इतिहास की सही समझ होने पर भारत बनेगा विश्वगुरु
मालवांचल यूनिवर्सिटी में आजादी के अमृत महोत्सव में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर महाराणा बख्तावरसिंह राणा पर सेमिनार
मालवांचल यूनिवर्सिटी इंडेक्स समूह संस्थान द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर सेमिनार का आयोजन किया गया।इसमें विद्यार्थियों को भारत देश की आजादी की संघर्ष गाथा के साथ मालवा के वीर योद्धा महाराणा बख्तावरसिंह के जीवन के साथ शिक्षा के महत्व के बारे में जानकारी दी गई। इंडेक्स मेडिकल कॉलेज सभागृह में मालवांचल यूनिवर्सिटी के कुलपति एन के त्रिपाठी ने कहा कि युवा पीढ़ी ही देश के निर्माण में सबसे जरूरी है। आज इस पीढ़ी को खुद से पहले देश को सही मायनों में समझना होगा। आजादी के अमृत महोत्सव के आयोजनों के जरिए हम सही मायनों में अपने देश को जान सकेंगे। आज केवल प्रोफेशनल नॉलेज लेकर पढ़ाई पूरी करना ही हमारी जिम्मेदारी नहीं है। बल्कि हमें महाराणा बख्तावरसिंह जैसे वीरों और आजादी के साथ अन्य विषयों की भी सही समय होना बेहद जरूरी है। सेमिनार श्रृंखला की इंडेक्स समूह के चेयरमैन सुरेशसिंह भदौरिया,वाइस चेयरमैन मयंकराज सिंह भदौरिया,डायरेक्टर आर एस राणावत,एडिशनल डायरेक्टर आर सी यादव, रजिस्ट्रार डॅा. एम क्रिस्टोफर ने सराहाना की।
आज हमें शिक्षित होने के साथ खुद के इतिहास को भी जानना जरूरी
कार्यक्रम में महाराणा बख्तावरसिंह के वशंज श्री अभय सिंह राठौर ने युवाओं को शिक्षा और आजादी के साथ महाराणा बख्तावरसिंह के जीवन से जुड़े अहम पहलूओं से रूबरू कराया। अभय सिंह राठौर ने कहा कि आज शिक्षित होने का अर्थ केवल डिग्री लेना नहीं बल्कि आज हमें अपनी भारतीय संस्कृति और आजादी के संघर्ष गाथा का सही ज्ञान भी होना बेहद जरूरी है। किस तरह हमारे देश के ज्ञात अज्ञात वीरों ने हमें इस आजाद हिंदुस्तान में जीने का मौका दिया है, आज हमारी लिए यह सबसे बड़ी शिक्षा है । हम डॅाक्टर या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करे लेकिन हमारे देश की संस्कृति को समझे। युवा पीढ़ी को शिक्षा के साथ आजादी और इतिहास की सही समझ होने पर भारत विश्वगुरु बनेगा। आज हर युवा को शिक्षित होने के साथ खुद के पहले इस देश, समाज और परिवार के बारे में भी सोचना चाहिए।
मालवा की माटी के वीर योद्धा के भय से अंग्रेजों ने बदले थे अपने नियम
श्री अभय सिंह राठौर ने कहा कि हमारे देश के हर कोने में वीरों की मौजूदगी गौरव के किस्से गढ़ती आई है। ऐसे ही एक वीर का नाम है मालवा के महाराणा अमर बलिदानी बख्तावर सिंह। मालवा के इस महान महाराणा बख्तावरसिंह ने 1857 में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान संपूर्ण मालवा व समीपस्थ गुजरात से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए क्रांति कर दी थी। वर्तमान मध्य प्रदेश के जिला धार में स्थित अमझेरा कस्बे में जन्मे महाराणा बख्तावर सिंह को मात्र सात वर्ष की छोटी सी उम्र में रियासत की बागडोर थामनी पड़ी। आज से 165 वर्ष पहले 11 नवंबर, 1857 को वीर महाराणा बख्तावर सिंह अंग्रेजों की घुड़सवार टुकड़ी महाराणा को पकड़ने में सफल हो गई। उन्होंने कहा कि फांसी देते वक्त फंदा टूटने पर माफी दे दी जाती थी, लेकिन अंग्रेजों में महाराणा बख्तावर सिंह का इतना भय था कि उन्होंने अपने ही नियम को तोड़ दिया और इस वीर योद्धा को दोबारा फांसी के फंदे पर लटका दिया। महाराणा को इंदौर में जिस नीम के पेड़ पर फांसी दी गई थी, वह पेड़ आज भी लहलहा रहा है। इस अवसर पर मालवांचल यूनिवर्सिटी के प्रो.वाइस चासंलर डॅा.रामगुलाम राजदान,डीन डॅा.जीएस पटेल, डॅा.सतीश करंदीकर, डॅा.रेशमा खुराना, डॅा.स्मृति जी सोलोमन, डॅा.जावेद खान पठान आदि शिक्षक उपस्थित थे।कार्यक्रम की अध्यक्षता आईआईडीएस असिस्टेंट डीन डॅा.दीप्ति सिंह हाड़ा और डॅा.पूनम तोमर राणा में हुआ। आभार असिस्टेंट रजिस्ट्रार डॅा.राजेंद्र सिंह ने माना। संचालन अशिता अग्रवाल और हर्षिता जामले ने किया ।